उत्तर प्रदेश में बसपा की स्थिति डावांडोल होती दिख रही हैं. एक और भाजपा नेता पहले ही ये बयान दे चुके हैं कि नोट बंदी ने बसपा सुप्रीमों को खोखला कर दिया हैं. दुसरी पर ईडी के छापों में बसपा के खातों में 104 करोड़ मिलना भी मायावती की छवि के लिए घातक हो सकता हैं.
सपा की राज्य में सरकार हैं. अखिलेश मुख्यमंत्री पद का भरपूर लाभ लेते हुए आचार सहिंता लागू होने से पहले तक बहुत सी विकास योजनाओं का शिलान्यास व शुभारम्भ करने की कोशिश में हैं. मुस्लिम मतदाता भले ही सपा से दूर जाते नज़र आते हों लेकिन अभी भी अधिकांश मुस्लिम वोट सपा के पाले में ही गिरने तय हैं. ये दिखाने के लिए कि सपा सरकार सिर्फ मुस्लिम मतदाताओं को रिझाने के लिए काम नहीं कर रहे बल्कि 17 जातियों को SC में डालने के लिए अखिलेश ने जो दांव खेला है उससे भी बीएसपी के पारम्परिक दलित वोट बैंक पर कुछ असर तो जरुर पड़ेगा.
मायावती ने एक समय तिलक, तराजू और तलवार .. जैसा नारा दिया था लेकिन जैसे ही 2007 के विधान सभा चुनाव में मायावती को लगा कि सिर्फ दलित की बेटी के नाम पर उन्हें वोट नहीं मिलेंगे उन्होंने तुरंत अपनी पार्टी का नारा बदल कर ‘हाथी नहीं गणेश है-ब्रह्मा, विष्णु, महेश है’ कर लिया. ऐसे में मायावती ब्राह्मण कार्ड खेलनेसे भी नहीं चुकेंगीमोर बसपा ब्राह्मणों को अधिक अहमियत देती भी दिखती हैं. इसका कारण ये भी हो सकता है कि यूपी का जातीय समीकरण मायावती को ऐसा करने के लिए मजबूर कर रहा हो. उत्तर प्रदेश में दलित 21 प्रतिशत हैं मुस्लिम 18 प्रतिशत और ब्राहमण 10 प्रतिशत से कुछ अधिक. ऐसे में मायावती इन तीनो को ही अपने पक्ष में करने की कोशिश करती नज़र आ रही हैं.
लेकिन उत्तरप्रदेश के पिछले विधान सभा चुनाव में मुहं की खाने के बाद लोकसभा चुनाव में मायावती की पार्टी एक सीट भी नहीं जीत पाई. तो अब विधान सभा चुनावों में जीत के लिए बसपा मुस्लिम वोटरों की और देख रही हैं. लेकिन ये डगर भी नीले हाथी के लिए आसान नहीं होने वाली क्यूंकि बसपा दो बार भाजपा के साथ उत्तर प्रदेश की सरकार बना चुकी हैं. ऐसे में मुस्लिम मतदाता का मायावती पर विश्वास करना आसान नहीं हो पायेगा.
खैर ये तय है कि इस बार का विधानसभा चुनाव मायावती के लिए सबसे मुश्किल होने वाला हैं. ये देखना मजेदार होगा कि नीला हाथी इस विधानसभा में कैसी चाल चलेगा ..