उत्तर प्रदेश चुनावों का हाल सस्पेसं थ्रिलर जैसा हो रहा हैं. जिसके फर्स्ट हाफ में सारी सुर्खियाँ समाजवादी पार्टी के पारिवारिक ड्रामे ने बटोरी और सेकंड हाफ गठबन्धनों के नाम होता दिख रहा हैं. कभी हाँ कभी ना करते हुए आखिरकार समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन हो ही गया. कभी शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाने वाली कांग्रेस अब अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री पद का सही दावेदार मान रही हैं.
तीन महीनों से चल रहे थे प्रयास
सपा और कांग्रेस में चुनावी गठबंधन होने की कोशिशें पिछले तीन महीनों से चल रही थी. कांग्रेस चाहती थी कि उसे 120 सीटें मिले लेकिन सपा 100 से अधिक सीटें देने को तैयार नहीं थी. इसी खींच तान के चलते बहुत बार गठबंधन खटाई में पड़ता भी दिखाई दिया. मुलायन सिंह ने तो दो तुक इस गठबंधन को मना कर दिया था लेकिन जब सपा की कमान अखिलेश के हाटों में आयी तभी कांग्रेस को आशा की किरण नज़र आयी होगी.
प्रियंका गाँधी ने निभायी महत्वपूर्ण भूमिका
प्रियंका गाँधी चुनावों एन कांग्रेस की और से स्टार प्रचारकों में आती हैं. अभी भी प्रियंका गाँधी का सक्रीय राजनीति में आने पर संशय बरकरार हैं. लेकिन इस गठबंधनको अमली जामा पहनाने में प्रियंका गाँधी की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रही हैं. इस बात का इकरार कांग्रेस पार्टी के दिग्गज नेता पटेल ने भी किया हैं. रविवार को अहमद पटेल ने कहा कि ये कहना गलत होगा कि सपा नेताओं से गठबंधन पर कांग्रेस के शीर्ष नेता बात नहीं कर रहे हैं. अपने एक ट्वीट में अहमद पटेल ने गठबंधन पर संवाद करने वाले कांग्रेसी नेताओं में गुलाब नबी आज़ाद के साथ प्रियंका गाँधी का नाम भी लिया हैं.
एक समय में अखिलेश यादव ने कांग्रेस हाई कमान के दूत कहे जाने वाले प्रशन किशोर को 100 से अधिक सीटें देने से मना कर दिया था. उसके बाद ही प्रियंका गाँधी ने कांग्रेस की प्रतिष्ठा का ध्यान रखते हुए सपा को बीच का रास्ता निकालनेको कहा जिसके अनुसार सपा ने कांग्रेस को 105 सेटों पर चुनाव लड़ने को हरी झंडी दिखा दी.
ऐसी भी खबरें थी कि जब कांग्रेस के उपाध्यक्ष नये साल पर देश से बाहर छुट्टियाँ मना रहे थे तब भी प्रियंका गाँधी उत्तर प्रदेश में सपा और कांग्रेस के गठबंधन के लिए प्रयासरत थी.