उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों के पहले व दुसरे चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में वोट डाले जायेंगे. यूपी के इस इलाके में जाट मतदाता मुस्लिम मतदाताओं की तरह ही अपना प्रभुत्व रखते हैं. मथुरा और बागपत जैसे जिलों में जाट मतदाताओं का वोट 30 प्रतिशत तक का हैं. ऐसे में जिस और ये जाट मतदाता जाएगा उस दल के जीतने की सम्भावना बढ़ जायेगी.
जाट समुदाय ने लोकसभा चुनावों में बीजेपी को जीत दिलाने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी. लोकसभा चुनावों में जाटों ने एकतरफा बीजीपी के लिए वोट किया था. लेकिन लिक्सभा से विधानसभा चुनावों तक आते आते जाटों का भाजपा से मोहभंग होता दिख रहा हैं. लोकसभा चुनावों के तीन साल बाद विधानसभा चुनावों में जाट मतदाता कुछ मुद्दों पर बीजेपी से खफा सा हैं.
बीजेपी से जाटों की नाराजगी की एक वजह पिछले साल मई में हरियाणा में हुए जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान बीजेपी का जाटों को समर्थन न देना भी हैं. आपको याद दिला दें कि उस आन्दोलन में 19 लोगों की जान गयी थी. जाटों का ऐसा मानना है कि जाट आन्दोलन को केंद्र सरकार नें सही तरीके से नहीं संभाला. साथ ही कुछ जाट नेताओं का ये भी मानना है कि केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जाट आरक्षण का ठीक से सपोर्ट नहीं किया. नोटबंदी भी इस आक्रोश का एक कारण हैं. देश में गन्ने के सबसे ज्यादा उत्पादन के लिए मशहूर इस बेल्ट में किसानों पर नोटबंदी की भी खासी मार पड़ी है.
वेस्ट यूपी की जाट लैंड केवल भाजपा के लिए ही नहीं बल्कि अन्य दलों के लिए भी निर्णायक साबित जाट अखिलेश यादव का भी समर्थन नहीं करते हैं. क्यूंकि अखिलेश यादव एक बार भी जाट लैंड में नहीं आये हैं. ऐसे में रालोद जाट वोटों का अधिक फायदा पहुंचता दिख रहा हैं. वेस्ट यूपी में गुर्जर, यादव, जाट और मुस्लिम समीकरण सियासी तस्वीर बदलते आए हैं. इस बार जाट इन सभी में ज्यादा डिसाइडिंग फैक्टर काम करेगा.
जाटों के सामने अब मजबूत प्रतिनिधित्व का मुद्दा भी खड़ा हैं. राष्ट्रीय लोकदल के नेता अजित सिंह और उनके पुत्र जयंत जाटों की परम्परागत पार्टी नेता माने जाते हैं. इसका फायदा रालोद को लोकसभा में तो मिला नहीं अब विधानसभा में इसका कितना फायदा रालोद उठा पायेगा ये देखना बाकी हैं.