यूपी में चुनाव प्रचार के दौरान एक अजीब सी बात नज़र आ रही हैं. और ये हों अखिलेश यादव व राहुल गाँधी द्वारा बसपा सुप्रीमो मायावती पर कम तेज हमले करना. जिस तरह सपा और कांग्रेस का चुनावी रैलियों में मुख्य फोकस केवल भाजपा की आलोचना करने में रहता है उससे अब ये लगने लगा हैं कि कहीं यूपी में भी बिहार की तरह महागठबंधन न बन जाएँ.
किसी पत्रकार द्वारा अनोपचारिक बातचीत करते समय बिहार के मुख्यमंत्री नितीश यादव से ये पूछा गया था कि क्या यूपी में भी बिहार की तरह महागठबंधन हो सकता हैं ? तब नितीश कुमार ने अपने चिर परिचित अंदाज में जवाब दिया था कि ऐसा तभी हो सकता हैं जब सपा और बसपा साथ आ जाएँ. उत्तर प्रदेश के राजनीति में अनाडी व्यक्ति को भी पता हैं कि ऐसा कभी संभव नहीं हैं. लेकिन अब समीकरण जरा बदले हुए हैं. अब सपा की कमान अखिलेश यादव के हाथों में चली गयी हैं.
जिस दिन राहुल गाँधी व अखिलेश यादव ने सयुंक्त प्रेसवार्ता की थी, उस दिन भी ऐसा ही कुछ प्रतीत हुआ था. विशेषकर तब जब राहुल गांधी ने कहा कि वह मायावती और कांशीराम का सम्मान करते हैं. यहाँ राहुल गाँधी ने ये भी कहा कि मायावती और बीजेपी में बड़ा फर्क है, बीजेपी क्रोध फैलाती है, गुस्सा फैलाती है, नफरत फैलाती है जबकि मायावती की विचारधारा से देश को खतरा नहीं है.
हाल ही में पश्चिमी यूपी के मुजफ्फरनगर के दौरे पर भी मुख्यमंत्री अखिलेश में जिस तरह से भाजपा को घेरा ऐसा तीखा प्रहार उन्होंने बसपा पर नहीं किया. इससे एक इशारा ये भी मिलता हैं कि कहीं चुनावों के बाद कोई बड़ी खबर तो आपका इन्तजार नहीं कर रही. सियासी गलियारों में ये चर्चा आम हैं कि वैसे तो सपा कांग्रेस गठबंधन को 300 सीट मिलना तय हैं लेकिन अगर ऐसा नहीं हो पाता हैं तो भी कांग्रेस यूपी में सत्ता पाने के लिए बसपा से हाथ मिलाने में गुरेज नहीं करेगी.
मोदी की आंधी में सबसे बुरी हालत कांग्रेस की ही हुई हैं. ऐसे में कांग्रेस का पहला उद्देश्य खुद को पहले जितनी मजबूत स्तिथि में लाना है. ऐसा करने के लिए कांग्रेस बसपा से हाथ मिला लें तो इसमें आश्चर्य करने वाली कोई बात नहीं होगी.