कल उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों के लिए मतदान का दूसरा चरण समाप्त हो गया. पहले मतदान चरण की तरह दुसरे चरण में भी बम्पर वोटिंग हुई. जिन क्षेत्रो में ये दोनों मतदान चरण पूरे हुए हैं वहां की जनता ने चुनाव प्रचार के समय किसी एक पार्टी की तरफ अपना झुकाव नहीं दिखाया था. लेकिन मतदान होने के बाद ये अंदाजा लगाना कुछ आसान हो जाता हैं कि किस दल की और लोगों का झुकाव अधिक हैं.
यूपी में अभी केवल दो चरणों के ही चुनाव हुए हैं, लेकिन सत्ता के तीनों दावेदार ये मान कर चल रहे होंगे कि आधी लड़ाई तो दो चरणों में ही खत्म हो चुकी है, इसलिए आगे चल कर जीत हार का फैसला भी इसी से तय होने वाला है.
लोकसभा चुनावों जैसे नहीं होंगे विधानसभा चुनावों के नतीजे.
विधानसभा चुनावों से अगर आप लोकसभा चुनावों के नतीजो जैसे परिणाम की उम्मीद कर रहे हैं तो आपको एक बात और समझनी होगी. लोकसभा चुनावों के समय मोदी लहर केवल इसलिए आयी क्यूंकि 2014 के चुनावों में लोग तत्कालीन सरकार से एकदम उकता चुके थे. उस समय जनता तब के प्रधानमंत्री को कमज़ोर मानने लगी थी. और इसी पर मतदाताओं ने जाति व धर्म के नाम पर अपने वोटों का बंटवारा न करते हुए एकजुट होकर नरेंद्र मोदी को वोट दिया.
सपा के लिए भी हैं कठिन डगर
यूपी में दुसरें चरण के मतदान के बाद ये तो स्पष्ट हैं कि यहाँ किसी एक दल या नेता की कोई लहर नहीं चल रही हैं. ज्यादातर सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला हो रहा है और वोटिंग खत्म होने के बाद हर पार्टी के कार्यकर्ताओं को हिसाब लगाना पड़ रहा है कि किस सीट पर उसके हार-जीत की कितनी संभावना है. मतदाता हर गत वर्ष के मुकाबले चुनाव दर चुनाव अधिक समझदार हो रहा हैं. पिछले विधानसभा परिणामो की तरह सपा के लिए इस बार वहीँ शानदार प्रदर्शन दोहरा पाना मुश्किल होगा.
सपा बसपा में अटका वोटर करेगा चुनावी परिणामों को प्रभावित
अभी तक ये कहा जाता हैं कि मुस्लिन वोटर बीजेपी को हराने के लिए वोट करता हैं. हालाँकि लोकसभा चुनावों में ये भ्रांति टूटी हैं. लेकिन फिर भी अगर हम इस बात को सच माने तो मुस्लिम वोटर के लिए सपा बसपा में से एक का चुनाव करना मुश्किल हैं. और उनकी इस पसोपेश का फायदा बीजेपी को मिल सकता हैं.