चुनावों के समय टिकटों के लिए रस्साकशी सभी पार्टियों में चलती हैं. लेकिन अभी तक ये सारी सुर्खियाँ केवल सपा के खाते में ही जाती दिख रही हैं. अब आप कह सकते हैं कि इससे सपा का नकारात्मक प्रचार ही हो रहा हैं लेकिन राजनितिक लोगों के लिए मुख्य बात ये हैं कि कम से कम प्रचार तो हो रहा हैं.
अब जल्दी ही भाजपा भी इसी तरह की लडाई के लिए तैयार होती दिख रही हैं. अभी तक भाजपाई टिकटों का इंतज़ार कर रहे हैं. एक बार टिकटों की घोषणा होने का बाद बीजेपी में भी पूरा घमासान मचता दिखेगा. बीजेपी के नेताओं के सामने दिक्कत ये हैं कि भले ही वे चुनावी रण में जाने के लिए कमर कस के तैयार हों लेकिन बाहर से आये नेता चुनावी टिकट के ज्यादा करीब दिखाई दे रहे हैं.
उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में सबसे अधिक सीटें आजमगढ़ के विधानसभा क्षेत्र में आती हैं. इस क्षेत्र मवन 10 सीटें पड़ती हैं. आजमगढ़ को सपा का क्षेत्र कहा जाता हैं. यहाँ की 9 सीटों पर सपा का कब्जा हैं और एक सीट बसपा के हिस्से में हैं. यहाँ भाजपा का प्रदर्शन कभी खास नहीं रहा. बीजेपी ने एक क्षेत्र में आख़री सीट 1996 में जीती थी. इस बार लोकसभा में जिस तरह से लोगों ने भाजपा को समर्थन दिया हैं उससे बीजीपी के लोग बहुत उत्साहित हैं और इन विधानसभा चुनावों में भाजपा सपा के इस गढ़ को अपने अधिकार में करना चाहती हैं.
आजमगढ़ क्षेत्र में पड़ने वाली फूलपुर व दीदारगंज सीट को भाजपा अपने हिस्से में कर लेना चाहती हैं. लेकिन भाजपा के लिए चिंता की बात ये हैं कि केवल इन्ही दोनों सीटों पर आधा आधा दर्जन उम्मीदवार अपना दावा पेश करने के लिए तैयार बैठे हैं. बसपा से बीजेपी में आये कृष्ण मुरारी विश्वकर्मा इस सीट से टिकट मिलने की आस लगाये बैठे हैं. यानि इस सीट से बाहरी दल से आये नेता को टिकट मिल सकता हैं.
कमोबेश ये ही हालत निजामाबाद सीट की भी हैं. यहाँ से भाजपा के पूर्व अध्यक्ष सहजानन्द राय टिकट मिलने की आस में हैं और एक अन्य भाजपा नेता विनोद राय भी यहाँ अच्छी पकड़ रखते हैं लेकिन सभी जातीय समीकरणों की ध्यान में रखते हुए हाल ही में भाजपा में शामिल हुए डॉ पीयूष यादव भी इसी सीट से चुनाव लड़ सकते हैं.
अब अगर भाजपा में बाहरी लोगों को पुराने नेताओं पर तरजीह दी गयी तो भाजपा में भी बगावत होना तय हैं.