2007 में अजमेर के सूफी संत हजरत ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह में हुए बम धमाके का फैसला आज बुधवार को आ गया है. मामले में छह फरवरी को अंतिम बहस पूरी हो गई थी. दरगाह में 11 अक्टूबर 2007 को विस्फोट हुआ था. तीन लोग मारे गए थे, 15 घायल हुए थे. शुरुआती जांच में इस बम ब्लास्ट के पीछे लश्करे तोयबा का हाथ बताया गया था. बाद में जांच के बाद इस ब्लास्ट के पीछे हिंदुत्ववादी संगठनों का हाथ बताया गया. इससे पहले अदालत 25 फरवरी को इस मामले में फैसला सुनाने वाली थी। मगर, दस्तावेजों और बयानों को पढ़ने और फैसला लंबा होने के कारण लिखने में समय लगने की वजह से अदालत ने फैसला सुनाने के लिए 8 मार्च की तारीख तय हुई थी
इस मामले में नौ अभियुक्त दस साल से ट्रायल का सामना कर रहे थे. इस ब्लास्ट केस में स्वामी असीमानंद, देवेंद्र गुप्ता, चंद्रशेखर लेवे, मुकेश वासनानी, लोकेश शर्मा, हर्षद भारत, मोहन रातिश्वर, संदीप डांगे, रामचंद कलसारा, भवेश पटेल, सुरेश नायर और मेहुल आरोपी थे. इस मामले में विशेष न्यायाधीश दिनेश गुप्ता ने आरोपी देवेंद्र गुप्ता, भावेश पटेल और सुनील जोशी को दोषी करार दिया है. आरोपियों में से सुनील जोशी की मर्त्यु हो चुकी हैं. जबकि स्वामी असीमानन्द व अन्य आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया. आरोपियों में से संदीप डांगे और रामचंद कलसारा अभी तक गायब हैं.
इस मामले में अभियोजन पक्ष की ओर से 149 गवाहों के बयान दर्ज करवाए गए, लेकिन अदालत में गवाही के दौरान कई गवाह अपने बयान से मुकर गए. अभियोजन पक्ष भी मानता है कि जो गवाह पक्षद्रोही साबित हुए हैं. वे काफी महत्वपूर्ण हैं. वहीं बचाव पक्ष ने मामले में कई आरोपियों को झूठा फंसाने की बात भी कही है. मुकरने वाले गवाहों में झारखंड के मंत्री रणधीर सिंह भी शामिल थे. मामले की जांच के बाद कुछ लोगों को गिरफ्तार किया गया था, जिनमें कुछ आरोपियों ने मजिस्ट्रेट के सामने बम ब्लास्ट के आरोप कबूल भी किए थे. लेकिन बाद में सभी आरोपियों और गवाहों ने सीबीआई और एनआईए पर डरा-धमकाकर बयान दर्ज करवाने का आरोप लगाया था.
पहले इस मामले में आरएसएस से जुड़े इंद्रेश कुमार और प्रज्ञा सिंह ठाकुर का नाम भी सामने आया था लेकिन जांच कर रही एनआईए ने इन दोनों के अलावा दो अन्य लोग जयंत भाई और रमेश गोहिल को क्लीन चिट दे दी थी.