अखिलेश यादव जो की आमतौर पे अपने शांत वर्ताव के लिए जाने जाते हैं अचानक से वो अपने पिटता के खिलाफ बागी हो गए जिसके कारण सपा में चुनाव से पहले ही फूट पड गई और पार्टी बिखर गई | लेकिन अखिलेश यादव के इस बगावती सुर के पीछे सपा के भीतर उनके विवाद पर भी नजर डालने की जरूरत है। एक तरफ जहां मुलायम सिंह यादव तमाम मौकों पर सार्वजनिक मंच पर अखिलेश यादव को डांटते थे तो अखिलेश यादव उसे पिता की डांट और सुझाव के तौर हंसते हुए टाल देते थे।
सार्वजनिक मंच पे अखिलेश की बदनामी –
जो सार्वजनिक मंच 24 अक्टूबर 2016 को हुआ, उस वक्त अखिलेश यादव, मुलायम सिंह यादव और शिवपाल यादव के बीच सार्वजनिक मंच पर जमकर कहासुनी हुई थी। जिस दौरान ये तीनो पार्टी कार्यालय में इकट्ठा हुए तो मुलायम सिंह ने अपने संबोधन में कहा था कि अखिलेश यादव तुम्हारी हैसियत ही क्या है, अपने दम पर चुनाव नहीं जीत सकते हो, उन्होंने यहां तक कहा था कि अमर सिंह मेरा भाई है, उन्होंने कई बार हमें बचाया है। अखिलेश यादव ने पार्टी के भीतर बगावत कर ना सिर्फ अपनी हैसियत दिखाई बल्कि यह भी साफ कर दिया कि पार्टी में उनकी लोकप्रियता सबसे अधिक है। सपा के 224 विधायकों में से 195 विधायकों ने अखिलेश का समर्थन किया, यही नहीं तमाम संसदीय बोर्ड के पांच में से चार सदस्यों ने भी अखिलेश का समर्थन किया।
अखिलेश के सम्मान में कमी –
हर मंच पर अखिलेश यादव को इस बात का सामना करना पड़ता था कि वह मुख्यमंत्री अपने दम पर नहीं बल्कि कृपा पर बने हैं और अमर सिंह, शिवपाल सिंह समेत तमाम नेताओं का पार्टी में अहम योगदान है। लिहाजा अखिलेश यादव इस दावे को सुनते थे लेकिन वह पिता के सम्मान के चलते उनका खंडन नहीं करते थे।
बाहरी लोग परिवार में पड़े भारी –
पार्टी में शिवपाल और अमर सिंह द्वारा लिए गए गलत फैसले से अखिलेश खुश नहीं थे और तमाम फैसलों के खिलाफ बोलते तो रहे लेकिन उनकी राय को हर बार दरकिनार किया जाता रहा। ऐसे में अखिलेश के लिए यह काफी अहम था कि वह या तो इन सारे फैसलों को सहते रहते या फिर दूसरे विकल्प के बारे में सोचें।