उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भले ही ये चुनाव विकास के दम पर लड़ने का दंभ भरते रहे लेकिन जातिगत वोट की राजनीति से सपा की ये पीढी भी अपना पीछा नहीं छुड़ाना चाहती. अखिलेश ने उत्तर प्रदेश के विकास को चुनावी मुद्दा बनाने के लिए रिकॉर्ड तोड़ शिलान्यास किये. और आज चल दिया सबसे बड़ा चुनावी दांव.
खिलेश सरकार ने सत्रह अति पिछड़ी जातियों को दलित कोटे में शामिल करने का प्रस्ताव कैबिनेट से पास कर दिया है और केंद्र के पास भेजा है. इसे अखिलेश का चुनाव से जस्ट पहले का कुटनीतिक कदम माना जा रहा हैं. एक तरफ तो अखिलेश इन अति पिछड़ी जातियों के वोटों को जीतना चाहेते और दुसरी तरफ केंद्र सरकार को कटघरे में खड़ा करना कहते हैं.
जिन जातियों को दलित कोटे में शामिल करने की बात की गई है उनमें कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिंद , भर, राजभर, धीवर , बाथम, तुरहा, गोंड, मांझी और मछुआरा हैं. आज ही यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने लखनऊ में कैबिनेट की मीटिंग बुलाई और सत्रह अति पिछड़ी जातियों को दलित कोटे में शामिल करने का प्रस्ताव पास किया.
अपने इस कदम से अखिलेश ने मायावती के वोट बैंक पर सीधा निशाना साधा हैं. इस वार से मायावती भी परेशान होंगी. और मायावती ने ब्यान दिया हैं कि ये सभी जातियां ओबीसी में आती हैं इन्हें एससी में डालना जनता के साथ धोखा हैं. साथ ही बसपा सुप्रीमो मायावती ने अखिलेश यादव के इस फैसले को चुनावी स्टंट भी बताया.
हालाँकि मुलायम सिंह के मुख्यमंत्री काल में भी सपा ने इन जातियों को एस सी कोटे में डालने का विचार किया था व इस विषय पर केंद्र सरकार को प्रस्ताव भी भेजा था लेकिनुस समय केंद्र सरकार ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था. वहीँ मायावती के अनुसार ये प्रस्ताव अभी भी केंद्र सरकार के पास हैं.
लोकसभी चुनाव में इन सभी जातियों ने खुलकर नरेंद्र मोदी का समर्थन किया था. लेकिन लोकसभा और विधानसभा के चुनावों में ढाई साल का अंतराल है. और इस बार अखिलेश पूरी तैयारी कर रहें हैं. चाहें बात विकास की हो या जातिगत समीकरणों की अखिलेश सभी को सपा के पक्ष में करना चाहते हैं.