हमारा देश विभिन्नताओं से भरा हुआ देश हैं. कहीं भाषाओं की विभिन्नता तो कहीं सांस्कृतिक विरासत में में विभिन्न नजरिये. कहीं किसान बेहाल तो कहीं व्यापारी दुखी और बिहार जैसे राज्यों में तो विध्यार्ती भी परेशान. लेकिन फिर भी हमारे यहाँ ऐसे मुद्दे जिनपर बहस चलती हैं वो किसी हीरोइन की स्कर्ट की लम्बाई पर उलझ जाते हैं या मोर की वंसग वर्धि के लिए अपनाई गयी प्रक्रिया पर.
कभी कभी समझ नहीं आता कि कैसे इस बेहाली भरे देश में इतनी समस्यों के बाद भी हमारे पास इतना टाइम होता हैं कि हम मोरे या हीरोइन की टांगों के बारें में बात कर लेते भी हैं. मिडडे तो और भी हैं जिन पर सोचना जरूरी हैं, या जिन पर बहस हो सकती हैं.
पहला मुद्दा तो ये ही जिसे हम मीडिया में अधिक देख या सुन नहीं पा रहगे या समझ नहीं पा रहे. और वो हैं शिक्षा का सियासीकरण. सीबीएसई स्कूलों में केवल NCERT की किताबों को लागू करने की जब से बात सामने आयी हैं, निजी प्रकाशकों व उसमें काम करने वाले लोगों की रातों की नींद उडी हुई हैं. इसे लेकर निजी प्रकाशकों ने जंतर मंतर पर प्रदेशन भी किया लेकिन प्रेस की और से उन्हें जो रिस्पांस मिला उसे हमारी देसी भाषा में नील बट्टे सन्नाटा कहा जाता हैं. आज शायद अभिभावक भी ये सोच रहें हैं कि सस्ती किताबे उनकी जेबों के लिए बेहतर होंगी लेकिन ये शायद अभी वे नहीं सोच पा रहे कि उनके बच्चें वो ही पढ़ पाएंगे जो देश की सरकार चाहेगी.
दुसरा मुद्दा बिहार की नैंसी झा की मौत का. ये गुत्थी सुलझ नहीं पा रहे हैं. उस बच्ची का तेज़ाब से जला शव देखकर शयद इंसानियत की रूह काँप जाये लेकिन अभी तक उसके हत्यारे पुलिस की पकड़ से दूर हैं.
तीसरा मुद्दा महाराष्ट्र से जुडा हैं जहाँ के किसानों ने हड़ताल कर दी हैं. वे न तो दूध, फल, सब्जियां, पोल्ट्री उत्पाद और मीट कहीं ले गए और न किसी को ले जाने दिया. अहमदनगर, नासिक, सांगली, सातारा, कोल्हापुर, सोलापुर, नांदेड़, जलगांव, अर्थात तटीय कोंकण का हिस्सा छोड़ दें तो लगभग समूचा महाराष्ट्र इस हड़ताल की जद में आ गया. इसका कारण कर्जमाफी पर कोई जवाब पर फसलों का मूल्य न बढ़ान हैं.
अब आप ही सोचिये जिस देश में विद्यार्थी, महिलाएं तथा किसान को न्याय नहीं मिल रहा वहां कौन से तीन साल की उपलब्धियां व कौन से मोर या हेरोइन की टांगों के मुद्दों में उलझे पड़े हैं हम.