राजनीति में संकेतों का बड़ा महत्व होता है। यही वजह है कि हर राजनीतिक दल वोटबैंक को एड्रेस करने के लिए अपनी-अपनी संकेतों की भाषा का प्रयोग करता है। बीजेपी के लिए भगवा, हिंदुत्व और राम मंदिर के संकेत बेहद अहम हैं तो कांग्रेस के लिए सेक्युलर शब्द बेहद महत्वपूर्ण है। इसी प्रकार से सपा, बसपा, आरजेडी, जदयू और अन्य दलों की भी संकेतों की एक अलग डिक्शनरी है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा एससी/एसटी कानून में किए गए बदलाव के फैसले के विरोध में देशभर में दलित संगठनों ने आज भारत बंद का ऐलान किया है। इस बंद का व्यापक असर भी देखने को मिल रहा है। कई राज्यों में हिंसा, आगजनी, तोड़फोड़ हो रही है। बीजेपी अच्छी तरह समझ रही है कि SC/ST एक्ट में बदलाव को लेकर संकेत अच्छा नहीं जा रहा है। वहीं, बसपा, कांग्रेस और अन्य दलों अपनी भाषा में लोगों को बता रहे हैं कि SC/ST एक्ट में बदलाव का फैसला भले ही सुप्रीम कोर्ट का हो, लेकिन जनसंदेश यही कि बीजेपी और मोदी सरकार दलित विरोधी है।
भारतबंद का क्या रिजल्ट है –
बात सिर्फ आरोप भर की नहीं है, मामला चुनावी गणित का है। तभी तो भारत बंद के बीच मायावती टीवी पर आईं और संकेतों की अपनी भाषा में बीजेपी को दलित विरोधी बता डाला। हालांकि, यहां सवाल उनके कुछ कहने या ना कहने का नहीं है बल्कि अहम बात यह है कि आखिरकार किस घटना से क्या संकेत निकलकर जनता के बीच जाता है। मतलब परसेप्शन क्या निकल रहा है?
बीजेपी के खिलाफ जा रहे दलित –
2014 में कांग्रेस के साथ हुआ, बात भ्रष्टाचार की हुई और कांग्रेस के साथ विपक्ष ने इस शब्द को फेवीकॉल की तरह चिपका दिया और जनता ने इस बात को स्वीकार भी किया। ठीक वैसे ही आज भी स्थिति बदलती दिख रही है, संकेतों और परसेप्शन की इस लड़ाई में विपक्ष मोदी सरकार के साथ सांप्रदायिकता, दंगे, आरक्षण विरोधी, मुस्लिम विरोधी और अब दलित विरोधी जैसी बातों को जोड़ने के लिए प्रयास कर रहा है। अगर तात्कालिक संकेत की बात करें तो सड़कों पर उग्र भीड़ का उतरना यह बताता है कि विपक्ष के संकेतों की भाषा का जनमानस पर असर होता दिख रहा है।
अब ये समीकरण –
अब सवाल यह उठ रहा है कि बीजेपी के पास अब क्या विकल्प हैं? कहीं ऐसा तो नहीं 2019 में मुस्लिम और दलित विरोधी छवि बीजेपी पर भारी पड़ जाएगी? हालांकि पार्टी और मोदी सरकार का स्पष्ट कहना होगा कि फैसला कोर्ट का है। यह बात सच है कि फैसला कोर्ट है, लेकिन संकेत यही जा रहा है कि मोदी सरकार दलित विरोधी है। जैसा कि बिहार चुनाव से ठीक पहले नीतीश कुमार ने बिहार का डीएनए और लालू ने आरक्षण का मुद्दा उठाकर बीजेपी को चारों खाने चित कर दिया था।