भाजपा के लिए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव चुनौतीपूर्ण बनते जा रहे हैं. इन यूपी चुनावों की अहमियत इस बार सपा कांग्रेस गठबंधन के कारण भी बढ़ गयी हैं. बहुजन समाज पार्टी भी चुनावों में पुरे दम ख़म के साथ प्रचार करने में लगी हैं. उत्तर प्रदेश में पहले चरण पश्चिमी यूपी को मिलाकर 71 विधानसभा सीटों पर वोट डाले जाने हैं. और करीब-करीब हर एक सीट पर इस बार मुकाबला समाजवादी-कांग्रेस गठबंधन और बहुजन समाज पार्टी के बीच होने की संभावना है. हालाँकि अभी तक आये ओपिनियन पोल में बीजेपी प्रदेश में पहली या दुसरी बड़ी पार्टी बनकर उभरी हैं. लेकिन ओपिनियन पोल के रिजल्ट को मतदाता चुटकियों में धत्ता बता सकते हैं.
घर-घर जाकर कर रहे हैं ये आग्रह
जमीनी स्तर पर भाजपा के नेताओं को पता हैं कि इस बार चुनावी परीक्षा कड़ी हैं. इसी कारण घर-घर जाकर चुनाव प्रचार के साथ साथ ये आग्रह भी कर रहे हैं कि वोट डालने भी जरुर जाएँ. वास्तव में बीजेपी के कट्टर वोटर ब्राह्मण, बनिया, ठाकुर और जाट हैं. अगर इन सभी का वोट प्रतिशत अधिक होता हैं तो बीजेपी को ही फायदा होगा. इस बार की चुनोती भाजपा के समक्ष ये भी हैं कि इस कट्टर वोट बैंक से जाट भाजपा ने नाखुश चल रहे हैं. क्यूंकि केंद्र में भाजपा की सरकार होने के बावजूद भी जाट आरक्षण नामंजूर हो गया.
अन्य चुनोतियाँ भी कम नहीं
एक अन्य चुनोती नेताओं की नयी श्रेणी से भी आ खडी हो गयी हैं. चुनावों का मौसम आते ही सभी दों में नेताओं की एक नयी श्रेणी बन जाते हैं. इस श्रेणी का नाम हैं “बागी नेता”. लगभग हर दल में आपको कुछ अंसतुष्ट नेता मिल ही जायेंगे. जैसे यूपी में गठबंधन के बाद जहाँ से कांग्रेसियों को टिकट नहीं मिला वहां से वे “असंतुष्ट” हो गए और जहाँ मिल गया वहां से सपाई नाराज़ हो गए.
लेकिन हम यहाँ विशेष रूप से भाजपा का जिक्र करना चाह रहे हैं. उत्तर प्रदेश के गोरखपुर और बस्ती मंडल में भाजपा नेता अपने दल से बगावत पर उतर आये हैं. कमोबेश यहे हालात भदोई जिलें में भी जल्द ही देखने को मिल सकते हैं. असल में इन जिलों में पार्टी ने दुसरें दलों को छोड़कर आये नेताओं को टिकट दे दिया हैं. नतीजन पुराने नेता बागी की श्रेणी में आने को तैयार हो गए हैं.
इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए हम कह सकते हैं कि भाजपा के लिए लोकसभा चुनावों से अधिक मुश्किल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं.