उत्तर प्रदेश चुनावों में साइकिल को अब हाथ का साथ मिल गया हैं. इस गठबंधन से सबसे अधक प्रभावित बसपा लग रही हैं. बसपा समाजवादी पार्टी के झगड़े में मुस्लिम मतों को अपनी तरफ झुका कर इन विधानसभा चुनावों में शीर्ष पर रहना चाहती थी. अबी ये मुस्लिम मतदाता फिर से सपा व कांग्रेस गठबंधन की और आकर्षित होता दिख रहा हैं.
वर्ष 2007 में मायावती ब्राहमण- मुस्लिम- दलित फोर्मुले को कामयाब कर सत्ता में आयी थी. लेकिन इन चुनोवों में भी बसपा सुप्रीमों इस करिश्में को अंजाम दे पाएंगी ? इस बात पर संशय बरकरार हैं. राजनितिक जानकारों का भी यही विचार हैं कि अब सपा कांग्रेस गठबंधन के बाद अधिकतर मुस्लिम वोट इन्ही के पक्ष में जायेंगे. ऐसे में मायावती का चिंतित होना लाजमी हैं. राजनीति विशेषज्ञ डॉ संजीव शर्मा के अनुसार उत्तर प्रदेश में चुनाव सीधे सीधे दो भागों में बंट गया हैं. ये हैं भाजपा व अन्य राजनितिक दल. यहाँ भाजपा को पता है कि मुस्लिम वोट उसे कतई नहीं मिलने वाले इसलिए वो इस और अधिक प्रयासरत भी नहीं हैं. लेकिन अन्य दलों के लिए मुस्लिम वोट उनकी तकदीर बदलने वाले साबित हो सकते हैं.
अभी तक अल्पसंख्यक मतों का झुकाव बसपा की और था और मायावती ने अपने सारी रणनीति इन्हें वोटों को पाने के लिए बिछाई थी लेकिन अब बसपा का नुक्सान तय हैं. इस बार बसपा सुप्रीमों ब्राहमण- मुस्लिम- दलित का समीकरण भी नहीं बिठा सकती. क्यूंकि ब्राहमण या अगडी जातियां अब भाजपा की और अपना रुझान दिखा रही हैं.
इस बार मायावती ने मुस्लिम प्रत्याशियों को रिकॉर्ड 97 टिकट दिए हैं. ये भी कारन हैं कि अगड़ी जातियां अब बसपा से दूरी बना रही हैं. इन 97 प्र्त्याशितों को टिकट देने के कारन बसपा सुप्रीमों ने अगड़ो और दलितों के टिकटों में भी कटोती हैं. यानि बसपा का पारम्परिक मतदाता भी मायावती के मुस्लिम प्रेम से प्रभावित हुआ हैं.
राज्य में कांग्रेस की हालत भले ही खस्ता हो लेकिन मुस्लिम मतदाता क्षेत्रीय दल सपा के मुलाब्ले अब कांग्रेस को अधिक पदंड करने लगा हैं. इसका मुख्य कारण हैं की केंद्र में कांग्रेस को ही भाजपा का सामना करना हैं. पहले प्रदेश में कांग्रेस का कोई खास जनाधार नहीं था इसी कारन से मुस्लिम वोट अन्य क्षेत्रीय दलों में बंट जाते थे. लेकिन इस बार ऐसा भी हिता नहीं दिख रहा.
ये तो तय हैं कि अब बसपा नुक्सान में हैं लेकिन त्रिशंकु विधानसभा बनने की स्थिति में मायावती ही मुख्य भूमिका निभाएंगी.