उत्तर प्रदेश से आये नतीजों ने भाजपाईयों को होली से पहले दिवाली बनाने का मौका दे दिया हैं. एग्जिट पोल से ये तो साफ़ था कि यूपी में बीजेपी को बढ़त मिल रही हैं लेकिन भाजपा के लोगों को बिहार जैसा हाल होने का दर भी सता रहा था. लेकिन मोदी की अंधी में सभी दल उड़ते ही नज़र आये. सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी ने मोदी लहर को रोकने के लिए कांग्रेस के साथ मिल कर चुनाव जीतने की करने की कोशिश की तो बहुजन समाज पार्टी ने अपनी सोशल इंजीनियरिंग के दायरे में मुसलमान, सवर्ण और ओबीसी को भी जगह दे दी. लेकिन राज्य के चुनावों में मोदी की आंधी यूं चली कि एक-एक कर सभी दिग्गज और दिग्गजों की हवा निकल गई.
दलितों ने भी मायावती को नहीं चुना
मायावती ने समाजवादी पार्टी से नजदीकी बढ़ाने में विफल कौमी एकता दल का अपनी पार्टी में विलय कराने के साथ-साथ मुख्तार अंसारी को मैदान में उतारा. इससे मायावती ने मुस्लिम वोटर को लुभाने की कोशिश की थी. मायावती का दलित मुस्लिम फैक्टर भी बहनजी के काम न आ पाया. बहुजन समाज पार्टी ने भी इस चुनाव में इन मुस्लिम वोटरों को लुभान की जमकर कोशिश की. उसने अबतक के अपने विधानसभा चुनावों के इतिहास में सबसे ज्यादा 97 मुसलमान उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है. ऐसा भी हो सकता हैं कि मुस्लिमों को लुभाने के चक्कर में मायावती अपने पारम्परिक वोट बैंक को भूल गयी.
मायावती ने इन चुनावों में हार की जिम्मेदारी लेने की बजाय मायावती ने बीजेपी की जीत पर उठाए सवाल. कहा, इवीएम में छेड़छाड़ की मायावती ने जताई आशंका. मायावती का कहना है कि लोगों ने वोट तो बसपा को दिया था. सभी लोगों का वोट केवल भाजपा को ही गया हैं.
सपा में शुरू हो गयी अंतर्कलह
घरेलू और पार्टी कलह का सामना कर रहे यूपी के सीएम अखिलेश यादव ने पिता और पार्टी के सबसे बड़े नेता मुलायम सिंह यादव के खिलाफ जाकर कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था. अब जब उनका यह प्रयोग बुरी तरह से असफल नजर आ रहा है, विरोधियों ने उनके खिलाफ मोर्चा खोलना शुरू कर दिया है. ऐसा लगता है कि एसपी को अपनी इस हार की आशंका पहले से ही थी. मतगणना से ठीक पहले अखिलेश ने संकेत दिए कि वह सत्ता से बाहर रहने के बजाए बीएसपी के साथ जाना पसंद करेंगे