उत्तर प्रदेश के विधानसभा के चुनावों का असर पुरे देश की राजनीती पर पड़ता हैं. इसलिए यहाँ होने वाले चुनाव पुरे देश के लिए कोतुहल का विषय बन जाते हैं. अब यहाँ सपा और कांग्रेस का गठबंधन लोगो का ध्यान अपनी और आकर्षित कर रहा हैं. भारतीय राजनीतिक नेताओं की आयु देखते हुए, अखिलेश और राहुल युवा नेता ही कहे जायेंगे. हालाँकि राहुल गाँधी पिछले इतने सालों में कुछ खास कर नहीं पाए हैं और अखिलेश यादव के पिता ही उनसे अधिक प्रभावित नहीं दीखते.
अभी तक लग रहा था कि सपा ने एक क्षत्रप होने के बाद भी देश की एक बड़ी राजनितिक पार्टी को अपने आगे झुका दिया. लेकिन अब शायद लोग ऐसा न कह पायें. अब कांग्रेस रायबरेली की सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगी. और अमेठी में भी कांग्रेस दो सीटों को छोड़कर शेष तीन सीटों पे अपने प्रत्याशी उतारेगी. अमेठी और रायबरेली दोनों हे दलों के लिए मुखु सीटें हैं. गठ्बंदः के समय भी इन सीटों पर पेंच फंसना तय था. लेकिन एक तरह से यहाँ अधिक सीटें मिलना कांग्रेस की ही जीत माना जायेगा.
ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्यूंकि रायबरेली में सपा ने 6 में से पांच सीटें जीती थीं. एक ऊंचाहार को छोड़कर बाकी कांग्रेस को दीं. ऐसा ही अमेठी में भी हुआ, यहाँ सपा ने चार में दो सीटें जीती थीं, एक अमेठी को छोड़कर बाकी कांग्रेस को दीं. अमेठी में भी सपा की और से गायत्री प्रजापति चुनावी मैदान में हैं और दुसरी और निर्दल के रूप में कांग्रेस के संजय सिंह की पत्नी अमिता सिंह खुद लड़ रही है. अब मतदाता कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में अमिता सिंह को ही अपना मत देंगे. इससे सपा प्रत्याशी गयात्री प्रजापति को भी नुकसान होगा.
उत्तर प्रदेश मने पिछले 27 सालो में जो कांग्रेस का प्रदर्शन रहा हैं, उसे देखते हुए सपा ने 105 सीटें कांग्रेस को देकर दरियादिली ही दिखाई हैं. राजनितिक गलियारों में ये चर्चा आम हैं कि मुलायम सिंह इसलिए भी अखिलेश से नाराज़ हैं क्यूंकि उन्होंने 105 सीटें कांग्रेस के हवाले कर दी.
ये बात मुलायन सिंह को अच्छे से समझ आ रही है कि जिस मुस्लिम मत से वो आज प्रदेश में राज कर रहे हैं वो वास्तव में कांग्रेस से छीना हुआ हैं. अब कहीं इस गठबंधन के चलते मुस्लिम मतदाता वापस कांग्रेस की और मुड़ गए तो सपा का प्रदेश में क्या होगा ?