अपने 14 साल के बनबास को ख़त्म करने के बाद बीजेपी ने आखिर यूपी में जीत दर्ज करली ली | बीजेपी ने इस बार आधे से अधिक दुसरे पार्टियों से आये उम्मीदवारों पे अपना दाँव खेला था जो की सफल हुआ | पार्टी के पास करीब 150 सीटों पर पार्टी के पास मजबूत उम्मीदवार नहीं थे। बीजेपी के एक वरिष्ठ रणनीतिकार ने चुनाव के छह महीने पहले यह कहा कहा था कि राज्य की सत्ता से दूर रहने की एक वजह यह भी रही है कि करीब 150 विधानसभाओं में पार्टी की स्थिति बेहद कमजोर है। चुनावों की आहट के साथ बीजेपी ने खुद को मजबूत करने की मुहिम शुरू की और कई अहम कदम उठाए।
125 बाहरी उम्मीदवारों को टिकट –
बीजेपी ने विधानसभा चुनाव में एक ओर जहां अपने परंपरागत वोट बैंक को ध्यान में रखा तो वहीं उन जगहों पर भी फोकस किया जहां पार्टी की स्थिति कमजोर थी। पार्टी ने प्रदेश की करीब 125 सीटों पर बाहर से आए नेताओं को टिकट दिया। इससे पार्टी के अंदर नाराजगी भी रही। एक नेता ने कहा, ‘पार्टी काडर इससे गुस्सा नहीं था, वे नाखुश थे। अवध क्षेत्र में भी पार्टी ने करीब आधे टिकट बाहरी उम्मीदवारों को दिए थे।
135 गैर यादव उम्मीदवार –
बीजेपी ने टिकट बंटवारे में जातिगत समीकरणों का खासा ध्यान रखा। पार्टी ने गैर-यादव और गैर-जाटव नेताओं को उम्मीदवार बनाया। पार्टी ने करीब 135 गैर-यादव ओबीसी उम्मीदवारों को मौका दिया और 65 से ज्यादा गैर-जाटव उम्मीदवारों को सुरक्षित सीटों पर उतारा। पार्टी की यह रणनीति काफी हद तक कामयाब रही और बीजेपी ने बंपर जीत दर्ज की।
दूसरी पार्टी से आये मजबूत नेता –
लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी ने यह फंडा अपनाया था। करीब दो दर्जन गैर-यादव ओबीसी सांसदों वाली बीजेपी ने विधानसभा चुनाव से पहले भी गैर-यादव और गैर-जाटव नेताओं को पार्टी में मिलाया। बीजेपी ने पहली सेंध बसपा के गैर-यादव नेताओं पर लगाई और एसपीएस बघेल, दारा सिंह चौहान और स्वामी प्रसाद मौर्य को शामिल कर लिया। बीजेपी ने गैर-यादव ओबीसी उम्मीदवारों को प्रतिनिधित्व देने की हर संभव कोशिश की। पार्टी ने ऐसे क्षेत्रों में मजबूत उम्मीदवारों को अपने पक्ष में करने की कोशिश की।