देश का एक राज्य कहे या फिर अलग देश जिसका नाम हैं जम्मू कश्मीर और अपने आप में उसके सभी नियम भारत से अलग हैं जबकि आता भारत में हैं | जीएसटी लागू होने के बाद सभी के मन में एक ही शंका हैं की आखिर भारत सरकार से तमाम सुविधाएँ लेने वाला जम्मू कश्मीर खुद के ऊपर एक देश एक टैक्स का नियम लगने देगा या नही |
अभी तक जम्मू-कश्मीर सरकार ने अब तक इसे स्वीकार नहीं किया है | घाटी में मौजूद राजनीतिक दल और व्यापारिक संस्थाएं इसका विरोध कर रही हैं | प्रमुख राजनीतिक दल नेशनल कॉन्फ्रेंस समेत सभी व्यापारिक संस्थाएं जीएसटी का विरोध इसलिए कर रही हैं क्योंकि उन्हें लग रहा है कि ‘जीएसटी – एक देश-एक कर’ अपनाकर वह अपनी स्वायत्तता खो देंगे | इस राज्य को ये दर्जा संविधान की धारा 370 के तहत मिला हुआ है | यहां ये बताना ज़रूरी है कि संसद ने संविधान एक्ट 2016 से भारत के संविधान को बदलकर संसद और राज्य की विधानसभाओं को देश में वस्तुओं और सेवाओं पर कर लगाने के लिए ज़रूरी शक्तियां दे दी हैं |
क्या हैं वहां की संवैधानिक स्थिति
हालांकि, संवैधानिक संशोधनों के मामले में जम्मू-कश्मीर को एक ख़ास दर्जा हासिल है | संविधान में संशोधन करने की शक्ति अनुच्छेद 368 में है जो जम्मू-कश्मीर पर थोड़े बदले हुए रूप में लागू होती है |
क्या हैं विशेषज्ञों का कहना
हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि जीएसटी को वर्तमान रूप में अपनाना आख़िरकार प्रदेश की स्वायत्तता को खत्म़ कर देना होगा | इसलिए जीएसटी को कुछ संशोधनों के साथ स्वीकार करना चाहिए | विशेषज्ञ कहते हैं कि जम्मू-कश्मीर किसी दूसरे प्रदेश की तरह इंट्रा-स्टेट माल की बिक्री पर जम्मू-कश्मीर जनरल सेल्स टैक्स और जम्मू-कश्मीर वैल्यू ऐडेड टैक्स लगा रहा है | लेकिन सर्विस टैक्स के लिहाज से इस राज्य की स्थिति अन्य राज्यों से भिन्न है | अन्य राज्यों में सर्विस टैक्स एक केंद्रीय क़ानून जैसे सर्विस टैक्स एक्ट के आधार पर लगाया जाता है, लेकिन ये क़ानून जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता |