कर्नाटक विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। राज्य में 12 मई को वोट डाले जाएंगे। इस चुनाव परिणाम के आधार पर 2019 में बीजेपी और कांग्रेस का भविष्य भी तय हो सकता है। यहां के चुनाव परिणाम का असर इस साल के अंत में होने वाले राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों पर भी पड़ना तय माना जा रहा है। कर्नाटक चुनाव में जेडीएस के भविष्य की बात करें तो कुमारास्वामी लगातार सही दिशा में मेहनत कर रहे हैं। इससे कांग्रेस की चिंता बढ़ रही है। कुमारास्वामी को जनता का जैसा समर्थन मिल रहा है उससे तस्वीर कुछ अलग हो सकती है। बात जेडीएस के भविष्य की करें तो चुनाव के बाद जेडीएस या तो किंग मेकर की भूमिका में होगी या फिर ‘राजनीतिक रसातल’ में पहुंच जाएगी।
यहाँ है जेडीएस की पकड़ मजबूत –
दो महीने पहले सत्ताधारी कांग्रेस और मुख्य विपक्षी दल बीजेपी ये मानकर चल रहे थे कि जेडीएस से उसे कोई टक्कर नहीं मिलने वाली। लेकिन, जैसे जैसे चुनाव नजदीक आ रहे है चीजें बदल रही हैं। कुमारास्वामी लगातार सही दिशा में मेहनत कर रहे हैं। इससे कांग्रेस की चिंता बढ़ रही है। कुमारास्वामी को जनता का जैसा समर्थन मिल रहा है, उससे ओल्ड मैसूर में परिणाम बदल सकते हैं। यहां गौड़ाओं की हमेशा से मजबूत पकड़ रही है। बीजेपी भी दबी जुबान से ओल्ड मैसूर क्षेत्र में जेडी (एस) के लिए बड़ी जीत की उम्मीद कर रही है, क्योंकि ऐसा होने पर राज्य में कांग्रेस का कुल आंकड़ा कम हो जाएगा। कांग्रेस और जेडी(एस) के बीच करीब 75 विधानसभा सीटों पर सीधा मुकाबला है। कांग्रेस और बीजेपी बाकी हिस्सों में आमने-सामने हैं। ऐसे में जेडीएस के किंगमेकर बनने की उम्मीद तो की ही जा सकती है।
रहेगी ये स्थिति –
कर्नाटक में या तो कांग्रेस या फिर बीजेपी पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बना ले। तीसरा परिणाम त्रिशंकु विधानसभा की हो सकती है और इसमें जेडीएस किंगमेकर की भूमिका में आ सकता है। जेडीएस ने बीएसपी के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन किया है ताकि राज्य के दलित वोट बैंक को हासिल किया जा सके। इस बात की उम्मीद बेहद कम है कि जेडीएस-बीएसपी गठबंधन अकेले बहुमत हासिल कर ले। यह जरूर हो सकता है कि यह गठबंधन कांग्रेस और बीजेपी के वोट बैंक को नुकसान पहुंचे दे। ऐसे में जेडीएस राज्य में सरकार बनाने या बिगाड़ने की स्थिति में रहेगी।
कांग्रेस को है इसकी चिंता –
असल में कांग्रेस को भाजपा से ज्यादा चिंता जे.डी.एस. और बसपा को गठबंधन के कारण हो रही है। पार्टी को लगता है कि यदि 2 फीसदी अधिक वोट भी जे.डी.एस. के पाले में गए तो चुनाव का सारा खेल बिगड़ जाएगा। ऐसा 2004 के चुनाव में हो चुका है जब जे.डी.एस. को 20.8 फीसदी मिले थे लेकिन पार्टी को 58 सीटों पर जीत हासिल हो गई थी। हालांकि जे.डी.एस. 2008 में बी 19.4 फीसदी वोट लेने में सफल रही थी लेकिन पार्टी की सीटों का आंकड़ा महज 28 पर ही रुक गया था। मात्र 1.4 फीसदी वोटों के अंतर से जे.डी.एस. ने 2004 में 30 अधिक सीटें जीत ली थीं। लिहाजा सिद्धारमैया जेडीएस को निशाना बना रहे हैं।