कैराना उपचुनाव: एक बर फिर गोरखपुर जैसे फसी बीजेपी, कांग्रेस ने बनाया बड़ा समीकरण

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Karaana bypoll again bjp in trouble

2019 में केंद्र की सियासत में वापसी का सपना संजोए भाजपा के लिए गोरखपुर-फूलपर से शुरू हुआ ‘विपक्षी झटके’ का दौर कर्नाटक तक जा पहुंचा। लोकसभा के आम चुनावों से ठीक पहले गोरखपुर-फूलपुर सीटों पर हार और कर्नाटक में सरकार बनाने से चूकी भाजपा के लिए अब पश्चिम यूपी की कैराना सीट पर होने वाले उपचुनाव में जो समीकरण बन रहे हैं, वो भगवा खेमे के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द हैं।

जाट मुस्लिम समीकरण-

फूलपुर और गोरखपुर में भाजपा को पटखनी दे चुके सपा-बसपा के गठजोड़ में अब कांग्रेस और आरएलडी (राष्ट्रीय लोकदल) भी शामिल हैं। अखिलेश यादव ने पश्चिम यूपी की इस सीट के लिए विशेष योजना बनाते हुए अपनी पार्टी की पूर्व सांसद तबस्सुम हसन को आरएलडी के टिकट पर उतारा है। इसके संकेत साफ हैं कि अखिलेश यादव कैराना सीट पर जाट+मुस्लिम समीकरण बनाकर जीत का परचम लहराना चाहते हैं। कैराना सीट पर 17 लाख वोटर हैं, जिनमें करीब 5.5 लाख मुसलमान और 1.7 लाख जाट वोट हैं। भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती इसी समीकरण की है।

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जिन्ना के बाद अब गन्ना सरदर्द-

यूपी सरकार के स्टेट एडवाइज्ड प्राइस 315-325 रुपए प्रति कुंटल की दर से खरीदे गए गन्ने के लिए किसानों को कुल 1695.25 करोड़ रुपए का भुगतान होना था, लेकिन अभी तक किसानों को केवल 888.03 रुपए का ही भुगतान किया गया है। गन्ना किसानों की समस्या को देखते हुए आरएलडी जोर-शोर से इस मुद्दे को उठाते हुए ‘उठ गया गन्ना, दब गया जिन्ना’ का नारा दे रही है। भाजपा भी इस बात से चिंतित है कि अगर इस चुनाव में गन्ना मुद्दा बना तो उसके लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है।

दलितों की नाराजगी-

दलितों के खिलाफ सहारनपुर और गुजरात और यूपी में हिंसा की खबरों से लेकर एससी-एसटी एक्ट में संसोधन के मुद्दे ने मोदी सरकार के खिलाफ दलितों में एक असंतोष को जन्म दिया है। हाल ही में महाराणा प्रताप जयंती पर सहारनपुर में भीम आर्मी के जिलाध्यक्ष के भाई की हत्या ने इस असंतोष को और भड़का दिया है। दलितों में भाजपा के प्रति बढ़ते असंतोष से खुद पीएम मोदी और अमित शाह भी परेशान हैं। कैराना सीट पर दलितों के करीब 2 लाख वोटर हैं, जिनमें से 1.5 लाख जाटव हैं।

आरएलडी का मजबूत गढ़-

2014 के चुनाव में मोदी लहर के चलते इस सीट पर भाजपा के बाबू हुकुम सिंह ने जीत दर्ज की और इससे पहले 2009 में बसपा के टिकट पर तबस्सुम हसन कैराना की सांसद बनी। लेकिन…इन दो चुनावों से पहले कैराना पर लगातार दस साल आरएलडी का ही कब्जा रहा। 2004 के लोकसभा चुनाव में हैडपंप के निशान पर अनुराधा चौधरी कैराना सीट से सांसद बनीं। उससे पहले 1999 के चुनाव में आरएलडी के ही अमीर आलम यहां से सांसद बने। कैराना सीट इसलिए भी लोकदल के लिए खास है क्योंकि यहां से चौधरी चरण की पत्नी गायत्री देवी सांसद रह चुकी हैं।

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