सरकार ने साफ किया है कि राजनीतिक पार्टियों पर 500 और हजार के पुराने नोट अपने खाते में जमा करने पर कोई टैक्स नहीं लगेगा. नोट बंदी के बाद ये प्रावधान किया गया था कि अगर कोई व्यक्ति यात सीमा यानि 2.5 लाख से अधिक की अघोषित राशि अपने बैंक अकाउंट में रखता हैं तो उसे टैक्स देना होगा. लेकिन इन दायरे में सिर्फ आम आदमी ही आयेंगे.
राजनितिक पार्टियों को इससे छुट मिल गयी हैं. राजनीतिक पार्टियों को इनकम टैक्स कानून के तहत पहले से ही छूट मिली हुई है. इस बारे में सरकार ने ये ही तर्क दिया कि चुनी राजनितिक पार्टियाँ इनकम टैक्स के दायरे में नहीं आते इसलिए राजनितिक पार्टियों पर पैसे जमा करने की कोई सीमा भी नहीं रखी जा सकती.
आपको ज्ञात हो कि राजनितिक पार्टीयों को RTI एक्ट से भी बाहर रखा गया हैं. यानि किस पार्टी को कितना चंदा कहाँ से मिला इसकी सुचना आपको नहीं मिल सकती. और नोट बंदी का फायदा भी इन राजनितिक पार्टियों को होता दिख रहा हैं. ऐसी सूचना है कि चुनाव आयोग को दी गयी जानकारी के अनुसार ज्यादातर सभी राजनीतिक पार्टियों के पास आनेवाले कैश चंदे में इजाफा हुआ है. नोट बंदी के बाद अधिक मात्रा में सभी राजनितिक पार्टियों नकद चंदा मिला हैं. इसका सीधा सा मतलब है कि अधिकतर लोगों ने अपना कला धन इन पार्टियों को चंदे में दे दिया हैं.
भारत में सबसे भ्रष्टाचार चुनावों में ही देखने को मिलता हैं. नोट बंदी का ये हदम भी भ्रष्टाचार को रोकने के लिए ही उठाया गया था, लेकिन राजनितिक पार्टियों को इससे बाहर रखना बड़ी चूक होगा. नोट बंदी के बाद बहुत से अर्थशास्त्रियों ने ये कहा था की सबसे पहले सभी राजनितिक पार्टियों को RTI के एक्ट में आना स्वीकार करना चाहिए और दुसरे कदम ने खुद को मिलने वाले चंदे की जानकारी को सार्वजानिक करना चाहिए. लेकिन सरकार की इस घोषणा से ऐसा होता मुमकिन नहीं दिख रहा.
और कुछ नहीं तो कम से इन पार्टियों को अंपनी चंदे के रूप में मिलने वाली आय पर आयकर देना तो शुरू करना ही चाहिए. जब राजनीति भ्रष्टाचार मुक्त होगी तभी भ्रष्टाचार मुक्त समाज की परिकल्पना संभव हो पायेगी.