नोट बंदी के बाद आये नकदी संकट के बीच भारतीय रिज़र्व बैंक से ये उम्मीद की जा रही थी कि RBI अपनी मॉनीटरी पॉलिसी में बदलाव करेगा. जिससे लोगों को ब्याज दरों में कुछ राहत मिलने की आशा थी. लेकिन भारतीय रिज़र्व बैंक लोगों को मायूस कर दिया.
नोटबंदी के बाद आयी पहली मॉनीटरी पॉलिसी में भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल ने रेपो रेट में किसी भी प्रकार की कटोती करने से इनकार किया. भारतीय रिज़र्व बैंक के इस कदम आम आदमी के साथ साथ इंडस्ट्री और स्टॉक मार्केट को भी निराशा हुई.
बाजार को ऐसी उम्मीद थी कि नोटबंदी के बाद पैदा हुए नकद के संकट व दबाव से बाहर निकालने के लिए रिजर्व बैंक कम से कम 25 बेसिस प्वाइंट की कटौती कर सकता है. ऐसा इसलिए भी था RBI का गवर्नर बनने के बाद क्यूंकि अक्टूबर में हुई पहली समीक्षा में पटेल ने ब्याज दरों में 25 बेसिस प्वाइट की कटौती की थी.
नोटबंदी के कारण कम हो सकता है ग्रोथ रेट
भारतीय रिज़र्व बैंक ने वर्ष 2016-17 के अपने पूर्व अनुमानित ग्रोथ को 7.6% से घटाकर 7.1% कर दिया. इससे ये साफ़ सन्देश जाता है कि भारतीय रिज़र्व बैंक ने नोटबंदी का भारत की ग्रोथ पर नकारात्मक असर पाया. साथ ही भारतीय रिज़र्व बैंक ने ये भी स्पष्ट किया कि नोट बंदी का फैसला, जल्दी में लिया गया फैसला नहीं था.
देश में चल रहे नकदी के संकट पर गवर्नर उर्जित पटेल ने कहा कि नए नोटों को छपने का काम बहुत तेजी से चल रहा है.
शेयर मार्किट पर असर
आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि महंगाई को देखते हुए ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं किया गया. RBI से ब्याज दरों में आशा अनुरूप बदलाव न मिलने के कारण अभी तक सेंसेक्स और निफ्टी के शेयरों में 100-100 पॉइंट्स की गिरावट आ चुकी है.