यूपी में चुनावों के दौरान मुस्लिम मतदाताओं के बढ़ते कद को लेकर को लेकर बहुत से बहुसंख्यको की पेशानी पर बल आना लाजमी हैं. भाजपा के अतिरिक्त सभी दल इन्ही मुस्लिम वोटो से जीतने का सपना देख रहे हैं. एसपी-कांग्रेस गठबंधन से लेकर बीएसपी तक सबकी नजर इन्हीं वोटरों पर है. इसमें हैदराबाद के सांसद असद्दुद्दीन ओवैसी से लेकर बरेलवी तौकीर रज़ा तक या फिर पीस पार्टी तक सबकी अपनी-अपनी नजर बनी हुई है. भाजपा मुस्लिम वोट पाने की इस लडाई से पूरी तरह बाहर है. पार्टी ने न ही किसी मुस्लिम को अपना उम्मीदवार बनाया है और न ही मुस्लिम समुदाय के मतदाता इस चुनाव में बीजेपी के साथ खड़े दिख रहे हैं.
उत्तर प्रदेश चुनावों में सभी दलों को अपने जीतने की उम्मीद दिखाई दे रही हैं. चुनाव प्रचार में ज़ुबानी जंग भी बहुत तेज हो रही हैं. इसमें अखिलेश यादव. पीएम मोदी व राहुल गाँधी को भाषणों के चर्चे तो होते ही रहते हैं. लेकिन जब तब अमित शाह, मायावती व आज़म खान जैसे नेता भी अपने भाषणों से चुनावी समर में हलचल मचाते रहते हैं.
मायावती ने फिर खेला दलित मुस्लिम कार्ड
मायावती ने मुस्लिम वोटरों को अपने पक्ष में करने के लिए मुस्लिम मतदातों से कहा कि एक बार फिर यूपी का दलित एकजुट होकर बसपा को समर्थन कर रहा हैं, इसलिए मुस्लिम मतदातों को भी अपना वोट बसपा के उम्मीदवारों को ही देना चाहिए. मायावती ने सपा कांग्रेस गठबंधन के बाहरी vs. यूपी के लड़के की तर्ज पर पीएम मोदी के लिए कहा कि यूपी की जनता ने गुजरात के बेटे को वापस भेजकर यहाँ की बेटी की सरकार बनाने का मन बना लिया हैं. साथ ही दलित समुदाय के लिए मायावती ने यह भी कहा कि अगर भाजपा राज्य की सत्ता में आती हैं तो आरक्षण व्यवस्था समाप्त कर देगी. लेकिन बहन जी का मुख्य लक्ष्य मुस्लिम वोटों को बसपा के पाले में करने का ही हैं.
आज़म खान ने कहा मायावती को मुस्लिम विरोधी
दिल्ली के शाही इमाम ने मुस्लिमों से बसपा के पक्ष में वोट करने की अपील की थी. इस पर आज़म खान ने कहा “दिल्ली में बैठा एक इमाम मुसलमानों की सौदेबाजी कर रहा हैं. आज़म खान ने बाबरी विध्वंस के समय स्व. कांशीराम की टिप्पणी को भी दोहराया.
कुल मिलाकर इस बार यूपी में केवल सत्ता में आने का संगर्ष नहीं हैं. बल्कि मुस्लिमों का कौन कितना बड़ा हितेषी हैं ये भी जताने की होड़ लगी हैं.