मोर पर एक हाईकोर्ट के जुद्गु के बयान को केवल हँसी में उड़ना सही नहीं हैं. ये जज साहब आपको ये भी बता गये कि भारत में सेक्स करना कितना अपवित्र हैं न केवल मनुष्यों बल्कि पशुओं के लिए भी. साथ ही अब ये भी सोचना पड़ेगा कि आखिर कैसे इतने बड़े पद पर आसीन व्यक्ति इतना धर्मांध हो सकता हैं ?
भारत देश अब बदलावों के दौर से गुजर रहा हैं. ऐसा हम इसलिए नहीं कह रहे कि हम आज की अरुण जेटली जी की प्रेस कांफ्रेंस से अधिक प्रभावित हो गए हैं. बल्कि ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्यूंकि देश में बड़ा बदलाव ये होने जा रहा हैं कि गाय को अब राष्ट्र पशु का दर्ज़ा मिलने वाला हैं. कल ही NDTV के रविश कुमार ने नई बहस शुरू करने की यह कहकर कोशिश की, कि गाय को राष्ट्र पशु का नहीं राष्ट्र माता का दर्ज़ा मिलना चाहिए. अब रविश बाबु ठहरें पत्रकार, उन्हें अपने शो की TRP के लिए मसाला तो चाहिए ही हैं. लेकिन ये सारी कवायद तब आम आदमी को झटका देती महसूस होती हैं जब जस्टिस यानि न्यायिक पद पर आसीन एक व्यक्ति बेतुके से लॉजिक देकर गाय की महानता साबित करने में जुट जाएँ.
हाई कोर्ट का एक जज अपने मन से कुछ भी कहानी बनाकर माइक के जरिये जनता तक पहुँचाने की कोशिश करता हैं और हमारे और आपके जैसा आम आदमी ये सोच कर परेशान होता हैं कि आखिर कैसे एक जज की कुर्सी पर बैठा व्यक्ति ऐसा धर्मांध हो सकता हैं. कैसे इन जज साहब ने अपनी अदालतों में फैसले लिए होंगे जो खुद ये कहने में गौरव का अनुभव करते हैं कि अपनी आत्मा की आवाज़ सुनते हुए अपने धार्मिक विश्वासों को देश भर में लागू करने के लिए सरकार को सुझाव दे दिया.
आपको एक बार बता दें कि इन जज साहब के विचार कैसे हैं जिन पर इतने बवाल खड़े हो रहे हैं. इनका मानना हैं कि मोर को राष्ट्रीय पक्षी इसलिए घोषित किया क्योंकि मोर आजीवन ब्रह्मचारी रहता है. मोर के आंसू को चुग कर मोरनी गर्भवती होती है. मोर कभी भी मोरनी के साथ सेक्स नहीं करता. मोर के पंख को भगवान कृष्ण ने इसलिए लगाया क्योंकि वह ब्रह्मचारी है. मंदिरों में भी इसलिए मोर पंख लगाया जाता है. ये हैं जस्टिस महेश चंद्र शर्मा. इन्होने मोर के बारे में जो कहा सो कहा साथ ही सेक्स को एक बार फिर अनैतिक बताने की कोशिश भी कर गये.
गाय के बारें में इनके विचार और भी पवित्र हैं. जैसे कि गाय ऑक्सीजन गैस छोडती हैं और न जाने जाने क्या क्या. ये सही हैं कि हुन्दुओं की आस्था हैं गाय में व हिन्दू गाय को माता मानते हैं लेकिन जज साहब ऐसे ऊल जलूल तर्क देकर उन्हें पागल तो न बनाएं.