चुनावों का समय आते ही हमारे नेताओं की जुबान और ज्यादा फिसलने लगती हैं. हमारे यहाँ विनय कटियार जैसे लोग हैं जो महिला नेता को उनकी खूबसूरती के लिए आंकते हैं और शरद टी-यादव जैसे वरिष्ठ नेता भी हैं जो वोट को अहिला की इज्ज़त से बड़ा मानते हैं. यह कहना कठिन हैं कि पुरुष ऐसी मानसिकता से कब आज़ाद होंगे लेकिन हर क्षेत्र की तरह राजनीती में भी महिलाओं का दबदबा पहले से अधिक बढ़ा हैं.
ये बात सभी दल अच्छे से जानते हैं की अगर उन्हें चुनावों में जीत हसू=इल करनी हैं तो तो उन्हें आधी आबादी को साधना भी होगा. भाजपा में स्मृति ईरानी का बढता कद ये ही दर्शाता हैं कि इस दल ने स्त्री शक्ति को अपना लिया हैं. स्मृति ईरानी की सबों में जुटती भीड़ केवल उनके मशहूर टीवी अदाकारा होने के कारन नहीं होती बल्कि उनकी भाषण देने की कला भी श्रोताओं को सभा स्थल पर ले आती हैं.
भाजपा में अन्य महिला नेताओं में हेमामालनी, उमा भारती, मेनका गाँधी, वसुंधरा राजे व भारतीय महिला मोर्चा की प्रदेश अध्यक्ष स्वाति सिंह का नाम भी शुमार हैं. इस लिस्ट में अनुप्रिया भी शामिल हैं जो भाजपा व अपना दल के लिए प्रचार करेंगी.
प्रियंका गाँधी वाड्रा को भले ही राजनीति विरासत में मिली हों लेकिन फिर भी उनकी दादी इंदिरा गाँधी से उनकी तुलना यूँ ही नहीं की जाती. अपने चुनाव प्रचार को अभी तक प्रियंका ने केवल रायबरेली और अमेठी तक ही सीमित किया हुआ हैं लेकिन इस बार कांग्रेस ने प्रियंका गाँधी को स्टार प्रचारक के रूप में उतारा हैं और कांग्रेसी ऐसी उम्मीद कर सकते हैं कि प्रियंका का चुनावी दौरा अब रायबरेली और अमेठी से बाहर भी हो सकता हैं. कांग्रेस की और से सोनिया गाँधी के चुनावी सभाओं को सम्भोदित करने में अभी संशय बना हुआ हैं. ऐसा सोनिया गाँधी के खराब स्वास्थ्य के कारण हैं.
समाजवादी पार्टी में इस बार अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव पुरे प्रदेश में अपनी पार्टी का प्रचार करती नज़र आयेंगी. सपा व कांग्रेस के गठबंधन के बाद प्रचार के पोस्टरों पर डिंपल यादव व प्रियंका गाँधी वाड्रा की तस्वीरों को अखिलेश ले बराबर ही जगह दी गयी हैं.
बसपा की अगर बात करें तो मायावती पार्टी की और से मुख्यमंत्री चेहरा भी हैं और पार्टी की स्टार प्रचारक भी. बसपा में स्टार प्रचारकों की लिस्ट में एकमात्र महिला भी.लेकिन यूपी की राजनीती में सबसे शक्तिशाली महिला चेहरा भी मायावती का ही हैं.
ऐसे में जो नेता महिला नेताओं को कम आंकने की भूल कर रहे हैं, उन्हें कहीं महिला मतदाता ही सबक न सिखा दें. जैसे धर्म व जातियों के नाम पर समाज एक जुट हो जाता हैं अगर स्त्री मतदाता एक जुट हो गयी तो इन बिगड़े बोलों को शांत करना आसान हो जायेगा.