यूपी में बीजेपी के सभी नेता धुआधार तरीके से रैलियाँ कर रहे हैं लेकिन अपने ही गढ़ बनारसी में बीजेपी चौतरफा घिरती नजर आ रही हैं | वाराणसी हमेशा से ही बीजेपी का गढ़ रहा है। इसका नजारा 2012 के विधानसभा चुनाव में भी नजर आया था जब अखिलेश की पिछले विधानसभा चुनाव में चली लहर के बीच बीजेपी ने पांच में से तीन सीटों पर कब्जा किया था। गौरतलब है कि टिकट वितरण के बाद से ही वाराणसी की पांच विधानसभा सीटों में से चार पर विरोध की लहर तेज होती जा रही है।
क्यों हैं बनारस बीजेपी का गढ़ –
वाराणसी के भाजपाई गढ़ होने के कई प्रबल तथ्य हैं। यहां से शंकर प्रसाद जायसवाल तीन बार सांसद रहे। उसके बाद डॉ. मुरली मनोहर जोशी और अब मोदी ने यहां से रिकॉर्ड मतों से जीत दर्ज करते हुए काशी के भाजपाई गढ़ होने की बात साबित की है। इतना ही नहीं लंबे समय से वाराणसी में महापौर भी भाजपा से ही होते रहे हैं। ये सभी तथ्य साबित करते हैं कि विपरीत परिस्थितियों में भी वाराणसी में भाजपा का झंडा बुलंद रहा है।
आखिर क्यों घिर रही हैं बीजेपी –
दरअसल, पूरा मामला टिकट बांटने को लेकर है। बीजेपी खुद में एक ब्रांड बन चुकी है। लेकिन, सात बार के विधायक श्यामदेव राय चौधरी नाराज चल रहे हैं। अपनों की बगावत से परेशान भाजपा को अब सहयोगी अपना दल से भी झटका खाना पड़ा है। जहां एक तरफ भाजपा-अद साथ-साथ गठबंधन से पूर्वांचल के जातीय समीकरण साधने की तैयारी में थे। वहीं, अब आपस में ही एक-दूसरे के खिलाफ प्रत्याशी उतारे जा रहे हैं।
बीजेपी से अपना दल भी नाराज –
रोहनिया विधानसभा सीट को लेकर बीजेपी और अपना दल में मनमुटाव चल रहा हैं और ये सीट सापा के खाते में फिसलती नजर आ रही हैं |
बीजेपी नेताओ ने खोला बीजेपी के खिलाफ मोर्चा –
कैंट क्षेत्र में लगातार भाजपाई पार्षद ही मोर्चा खोले हुए हैं। वहीं, उत्तरी में भाजपा किसान मोर्चा प्रदेश महामंत्री ने ही विधायक रवींद्र जायसवाल के खिलाफ निर्दलीय लड़ने का एलान कर दिया है।
मनीष सिंह भी रोहनिया सीट से टिकट ना मिलने के कारण निर्दलीय लड़ने की धमकी दे चुके हैं |
अब देखना ये होगा की बीजेपी के इस आंतरिक मनमुटाव से विरोधी पार्टियों को कटना फायदा मिलता हैं |