नई दिल्ली: भारत और पाकिस्तान के बीच लड़ा गया एक ऐसा युद्ध जिसकी कई सारी कहानियां है और आज भी लोगो के जेहन में बसी हुई है| कारगिल की लड़ाई में हसते हसते शहीद हो जाने वाले जवान आज भी लोगो की यादो में बने हुए है| कारगिल यूद्ध का एक ऐसा जवान भी है जिसे याद करते हुए आज कहा जाता है की अगर वो जिन्दा होते तो आर्मी चीफ होते| नाम बिक्रम बत्रा, 22 साल का युवक, घनी ढाढ़ी और चेहरे में मुस्कान| विक्रम बत्रा को लेकर कई सारी कहानियां है जो कारगिल की यादे ताजा करती है| इन्ही में से एक कहानी है जब उन्होंने पाकिस्तानियो को गोली मारते हुए कहा था की ये लो माधुरी दीक्षित-
क्या था वाकया- 19 जून, 1999 को कैप्टन विक्रम बत्रा की लीडरशिप में इंडियन आर्मी ने घुसपैठियों से प्वांइट 5140 छीन लिया था, ये बड़ा इंपॉर्टेंट और स्ट्रेटेजिक प्वांइट था, क्योंकि ये एक ऊंची, सीधी चढ़ाई पर पड़ता था| वहां छिपे पाकिस्तानी घुसपैठिए भारतीय सैनिकों पर ऊंचाई से गोलियां बरसा रहे थे| इसे जीतते ही विकम बत्रा अगले प्वांइट 4875 को जीतने के लिए चल दिए, जो सी लेवल से 17 हजार फीट की ऊंचाई पर था और 80 डिग्री की चढ़ाई पर पड़ता था| 7 जुलाई 1999 को उनकी मौत एक जख्मी ऑफिसर को बचाते हुए हुई थी| इस ऑफिसर को बचाते हुए कैप्टन ने कहा था, ‘तुम हट जाओ. तुम्हारे बीवी-बच्चे है| उनके साथी नवीन, जो बंकर में उनके साथ थे, बताते हैं कि अचानक एक बम उनके पैर के पास आकर फटा| नवीन बुरी तरह घायल हो गए पर विक्रम बत्रा ने तुरंत उन्हे वहां से हटाया, जिससे नवीन की जान बच गई और उसके आधे घंटे बाद कैप्टन ने अपनी जान दूसरे ऑफिसर को बचाते हुए खो दी| विक्रम बत्रा के बारे में बताते हुए नवीन इमोशनल हो जाते हैं| एक वाकया और सुनाते हैं कि पाकिस्तानी घुसपैठिये लड़ाई के दौरान चिल्लाए, ‘हमें माधुरी दीक्षित दे दो. हम नरमदिल हो जाएंगे’. इस बात पर कैप्टन विक्रम बत्रा मुस्कुराए और अपनी AK-47 से फायर करते हुए बोले, ‘लो माधुरी दीक्षित के प्यार के साथ’ और कई सैनिकों को मार गिराया|
बड़ी रोचक है कहानी– विक्रम बत्रा की कहानी केवल भात में नहीं बल्कि पाकिस्तान में भी सुनाई जाती है और पाकिस्तानी सेना उन्हें शेरशाह कहती थी| इतना खौफ था उनका पाकिस्तानी सेना के बीच| विक्रम बत्रा की 13 JAK रायफल्स में 6 दिसम्बर 1997 को लेफ्टिनेंट के पोस्ट पर जॉइनिंग हुई थी| दो साल के अंदर ही वो कैप्टन बन गए|
उसी वक्त कारगिल वॉर शुरू हो गया और 7 जुलाई, 1999 को 4875 प्वांइट पर उन्होंने अपनी जान गंवा दी, पर जब तक जिंदा रहे, तब तक अपने साथी सैनिकों की जान बचाते रहे|