उत्तर प्रदेश में फिर से सत्ता में आने के लिए सपा ने कांग्रेस के हाथ मिला लिया हैं. अब विभिन्न राजनितिक पार्टियों को अपने पिछले समीकरणों को बदलना पड़ सकता हैं. बसपा को अपने मुस्लिम दलित समीकरणों से मिलते वोट के हाथ से खिसकने की चिंता सता रही हैं और भाजपा को मुस्लिम वोटों का सपा व कांग्रेस की और एकतरफा झुकाव परेशानी में डाल रहा हैं. अब ये देखना भी जरूरी हैं कि इस गठबंधन से अधिक फायदा किसको होगा सपा को या कांग्रेस को.
समाजवादी पार्टी कितने फायदे में
अखिलेश यादव व सपा के दिग्गज नेता ये बात अच्छे से जानते हैं कि इस बार की परिस्तिथियाँ पिछले चुनावों जैसी नहीं रही हैं. इस बार सपा का केवल अपने भरोसे पूर्ण बहुमत से सत्ता में आना मुमकिन नहीं हैं. इसलिए हाथ का सहारा लेकर साइकिल चलाना शायद सपा की भी मजबूरी है. समाजवादी पार्टी में चलें झगड़े की वजह से मुस्लिम वोटों का बसपा की और जाना तय था लेकिन सपा और कांग्रेस ने गठबंधन करते समय खुद को साम्प्रदायिक ताकतों की खिलाफ एकजुट बताया. ऐसा करने से मुस्लिम वोटों का झुकाव इस गठबंधन की और बढ़ना तय हैं.
कांग्रेस के लिए कितना फायदा
कांग्रेस के लिए विधानसभा चुनावों के लिहाज़ से उत्तर प्रदेश में पिछले 27 वर्षो से वोटों का सुखा पड़ा हुआ हैं. केंद्र की राजनीति में भी सीटों के लिहाज़ से कांग्रेस बड़ी पार्टी नहीं रह गयी हैं. उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का चेहरा बनने वाला कोई नेता नहीं हैं. चुनावी मौसम में प्रियंका गाँधी वाड्रा जरुर उत्तर प्रदेश में रैली करती दिखती हैं लेकिन ये सब बस चुनावों के समय में ही होता हैं इसलिए भी यहाँ की जनता कांग्रेस से अधिक जुडाव महसूस नहीं कर पाती. ऐसे में कांग्रेस अगर गठबंधन के बहाने से ही सत्ता में आती हैं तो भी उसके लिए फायदे की ही बात हैं.
2019 पर हैं नज़र
राहुल गाँधी का मुख्य लक्ष्य उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव न होकर 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव हैं. कांग्रेस के लिए गठबंधन की 105 सीटों पर मिली जीत भी यूपी के कार्यकर्ताओं में जोश भर सकती हैं. पिछली बार के विधानसभा चुनावों में सपा को 29 फीसदी वोट मिले थे और कांग्रेस को 11 फीसदी. अगर साथ में दोनों दल चुनाव लड़ेंगे तो इनके जीतने की सम्भावना अधिक तो होगी ही.