कलावा बाँधने का धार्मिक और वैज्ञानिक नजरिया
हिन्दू धर्म में होने वाले हर एक पूजा पाठ में और हर एक धार्मिक अनुष्ठान में हाथ में धागा बाँधा जाता हैं जिसे कलावा कहते हैं | पूजा कराने वाले पंडित इसको बांधते समय यजमान के सुख समृद्धि की कामना करते हैं और भगवान से प्रार्थना करते हैं की यजमान के घर में सुख , सम्पदा बनी रहे | हम आपको बताते हैं कलावा बाँधने के कुछ वैज्ञानिक और धार्मिक कारण |
धार्मिक कारण –
शास्त्रों के अनुसार कलावा बाधने की प्रथा रजा बलि ने शुरू की थी शायद इसीलिए इसको बांधते समय कहा जाता है “ येन बद्धो बलि राजा’’ | कलावे को रक्षा सूत्र भी माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि कलाई पर इसके बाधे जाने से जीवन पर आने वाले संकट से रक्षा होती है। मान्यता है कि कलावा बांधने से तीनों देवों – ब्रह्मा, विष्णु और महेश की कृपा बनती है। साथ ही तीनों देवियों सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती की भी कृपा मिलती है। वहीं वेदों में लिखा है कि वृत्रासुर से युद्ध के लिये जाते समय इंद्राणी शची ने भी इंद्र की दाहिनी भुजा पर रक्षासूत्र (जिसे मौली या कलावा भी कहते हैं) बांधा था। जिससे वृत्रासुर को मारकर इंद्र विजयी बने और तभी से रक्षासूत्र या मौली बांधने की प्रथा शुरू हुई। यह कच्चे सूत से बनाया जाता हैं और इसके कई रंग होते हैं जैसे की लाल , पीला |
पुरुषों और अविवाहित लड़कियों के दाएं हाथ में और विवाहित महिलाओं के बाएं हाथ में मौली या कलावा बांधा जाता है। मान्यता है कि वाहन, बही-खाता, मेन गेट, चाबी के छल्ले और तिजोरी आदि पर भी पवित्र मौली या कलावा बांधने से लाभ होता है। मौली से बनी सजावट की वस्तुएं घर में रखने से वरकत होती है और खुशियां आती हैं।
वैज्ञानिक कारण –
इसके पीछे वैज्ञानिक कारण यह हैं की शरीर की कई सारे नसें कलाई से होकर जाती हैं और कलावा बाँधने से इन नसों की क्रिया को नियंत्रित किया जा सकता हैं जिससे शरीर में होने वाले बात , दोष और पित्त जैसे रोग नहीं होते हैं | कहा जाता हैं क कलावा बाँधने से ह्रदय रोग , रक्त चाप में काफी हद तक नियंत्रण किया जाता हैं |
यह बहुत पवित्र हैं इसको बाँधने के बाद फेंके नहीं बल्कि किसी पूजा वाली जगह में रख दे बाद में नदी में विसर्जित कर दें |