यूपी में इस बार के विधानसभा के चुनाव पिछले हर चुनावों से अलग हैं. इसका कारण हैं कि इन चुनावों में एक बड़ी राजनितिक पार्टी कांग्रेस ने एक क्षत्रप सपा के साथ गठबंधन किया हैं. हालाँकि ये कोई नयी बात नहीं पंजाब में और नार्थ ईस्ट के राज्यों में ऐसे गठबंधन होना आम ही हैं. लेकिन उत्तर प्रदेश में इस गठबंधन का मुख्य उद्देश्य सत्ता में आना हैं. इस गठबंधन के बाद मुस्लिमों में काफी हद ये संशय खत्म हो गया था कि अब उन्हें अपना मत किसे देना हैं.
इस बार ऐसे अलग हैं ये चुनाव.
कल पश्चिमी यूपी में मतदान होना हैं. अब तक सभी मतदाता सोच चुके होंगे कि उन्हें अपना वोट किसे देना हैं. लेकिन कल अचानक ही दिल्ली की जामा मस्जिद के शाही इमाम मौलाना अहमद बुखारी ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को समर्थन देने का ऐलान किया. अब ये ऐलान मुस्लिमों के लिए कितना महत्तवपूर्ण हैं ये तो देखने की बात हैं लेकिन इससे सपा कांग्रेस गठबंधन पर प्रभाव पड़ना तय हैं.
सपा लगभग बंट ही चुकी थी, अभी भी पिता मुलायम पुत्र अखिलेश पर कभी नरम कभी गरम दीखते हैं. बसपा ने मुस्लिम वोटों को आकर्षित करने के लिए बहुत से मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट भी दिया हैं.फिर अखिलेश ने गठबंधन का दांव चला. ऐसे में मुस्लिमों को गठबंधन व बसपा में से एक का चुनाव करना था. इससे भाजपा को भी फायदा मिल रहा था. भले ही मुस्लिम वोट सपा कांग्रेस गठबंधन या बसपा में बंट जाए लेकिन बहुसंख्यक समुदाय के लोग एकजुट होकर भाजपा को ही वोट देंगे.
मुस्लिम मतदाताओं की बढ़ी दुविधा.
मुस्लिम समुदाय सभी आपस में विचार करके एक ही दल को अपना मत देते हैं. इस समुदाय में धार्मिक गुरुओं और उलेमाओं की बातों को भी बहुत तरजीह दी जाती हैं.मुस्लिमों को अभी तक सपा और कांग्रेस गठबंधन का ही विकल्प दिख रहा था. उसके बाद बसपा ने मुस्लिमों की और अपना रुझान दिखाया. बुखारी ने भी इया बात को स्वीकार किया हैं. बुखारी के अनुसार सपा समेत कई पार्टियां यह समझती हैं कि उन्हें वोट देना मुसलमानों की मजबूरी है लेकिन मुसलमानों को उनकी यह धारणा दूर करके यह बता देना चाहिए कि जब तक हमारी समस्याओं का समाधान नहीं होगा, उत्तर प्रदेश में राजनीतिक स्थिरता का सवाल ही पैदा नहीं होता.